लाइब्रेरी में जोड़ें

पत्थर के इंसान




सत्तेस गढ़ राजघराना जंगलों के बीच छोटा सा रियासत जिसकी अपनी पहचान धाक हमेशा से रही हैं प्रसिद्ध रहस्यमय उपन्यास  के उपन्याकार देवकी नंदन खत्री जी ने अपने उपन्यास चंद्रकांता संतति की रचना इन्ही पृष्टभूमि पर किया है ।

आजादी के बाद लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल के द्वारा छोटे बड़े सभी रियासतो को मिलाकर हिंदुस्तान को एक राष्ट्र के स्वरूप में संगठित किया गया सत्तेस गढ़ का भी अस्तित्व भारत की आत्मा का अंग बन गया ।

राज परिवार के सम्मान एव रुतबे में कोई फर्क नही पड़ा परिबिर्स कि सुविधा एव खेती बारी की प्रचुरता के कारण पुराने राज परिवारों का कोई सदस्य कोई नौकरी करना शान के खिलाफ समझता था ।

1951 में भारत सरकार द्वारा प्रिवीपर्स समाप्त किये जाने के बाद एव भूमि सुधार कानून सीलिंग एक्ट लागू करने के बाद अधिकतर रियासतो के पास बहुत कुछ नही बच सका।

 राज परिवारों ने राजनीति की तरफ रुख किया मगर बहुत सफल नही हुये परिणामतः छोटे मोटे रियासतो का अस्तित्व एक दम सामान्य हो गया और राज परिवारों के सदस्य सरकारी नौकरियों के हर पदों पर आने लगे।

सत्तेस गढ़ राजा ताम्रकार सिंह बहुत व्यवहारिक मिलनसार एव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे
जैसे राजा ताम्रकर सिंह थे ठीक उनकी पत्नी भी बहुत शौम्य एव मृदुभाषी एव मिलनसार थी लोंगो के बीच रानी साहिबा तृषा  के नाम से मश्हूर थी ।

ताम्रकर एव तृषा की जोड़ी बहुत ही अनुकरणीय और आदर्श थी कभी कभी लोंगो को रस्क भी होता राजा ताम्रकर एव तृषा के जीवन मे कोई कमी नही थी राजा ताम्रकर ने रियासत के रुतबे ठाट बाट को कायम रखने के लिए राजनीति कि तरफ रुख ना कर व्यवसाय को ही पारिवारिक रसूख का जरिया बनाया।

व्यववसाय बहुत बड़े पैमाने पर था जाने कितने पेट्रोल पंप एजेंसीज आदि आदि जैसे रियसत में हज़ारों कर्मचारियों की संख्या रहती अब भी हज़ारों कर्मचारियों की संख्या थी जो राजा साहब के व्यवसायिक कार्यो में लगे थे ।

रियासत के समय मे रियासत की छोटी मोटी सेना हुआ करती थी आब व्यवसायिक समाजिक रुतबे सुरक्षा की दृष्टिकोण से दबंग अपराधियों को शरण देकर उन्हें पालते यानी कुल मिला जुलकर रियासत के रुतबे का समयानुसार स्वरूप बदल गया था मगर था रुतबा कायम।

राजा ताम्रकर एव तृषा को एक ही तकलीफ थी उन्हें कोई संतान
नही थी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा पण्डित पुजारी डॉक्टर सभी को दिखा चुके थे लेकिन कोई फायदा नही हुआ राजा ताम्रकर एव तृषा बहुत उदास रहते ताम्रकर ने बहुत मुश्किल से पुराने रियसत के रुतबे दौलत शानो शौकत को नए परिवेश परिस्थितियों में  नए तौर तरीकों में कायम कर रखा था जो संतान न होने के कारण बेकार ही था समय के साथ सन्तानोपत्ति की आयु भी बीतती जा रही थी ।

एक दिन राजा ताम्रकर दिल्ली किसी व्यवसायीक कार्य से गये थे रानी तृषा एव कारिन्दे ही घर पर थे दिन के दो तीन बजे  थे भयंकर गर्मी का महीना रानी तृषा सो रही थी तभी ढोल का सोर सुनाई देने लगा  रानी तृषा की नींद खुली और उन्होंने महल के परकोटे से झांक कर देखा तो पता चला कि नट जो शारीरिक करतब दिखाते है आये है रानी भी परकोटे पर बैठ नटो का करतब देखने। 

करतब दिखाने वालों को छोटे छोटे बच्चों एव अन्य लोंगो ने घेर रखा था करतब देख कर बच्चे खुश होते तो अन्य लोग तारीफ मे तालियां बजाते बहुत खुशनुमा वातावरण नटो ने करतब दिखाना बन्द कर दिया और नटो के समूह की एक महिला जगिया ने परकोटे की तरफ इशारा करते हुए कहा जब तक रानी सा नीचे नही आती हम यहाँ के किसी आदमी से कुछ नही लेंगे ना ही कोई आदमी कुछ भी देने की कोशिश करेगा ।

नटो को घेरे भीड़ ने कहा रानी सा तृषा जी आप नीचे आये आपकी प्रिय प्रजा की पुकार है एक दो बार इनकार करने के उपरांत रानी तृषा  महल के परकोटे से नीचे उत्तरी औऱ नटो  को घेरे जनता के बीच खड़ी हो गयी बच्चों की तो कोई बात नही मगर बुजुर्गों ने अपने मुह फेर लिए या वहां से चल दिये क्योकि रानी सा सबकी बहु बेटी की तरह थी उन्हें सभी बहुत सम्मान देते थे ।

रानी सा  के आने के बाद जगिया ने कहा रानी सा आपको भगवान ने सब कुछ दिया है एक औलाद छोड़ कर जंगिया सही बोली ना रानी सा ?रानी तृषा ने कहा सही है लेकिन तू क्या करेगी हम तो दुनियां भर घूम आये है कही से कोई उम्मीद नही है जंगिया बोली रानी सा हम आदिवासी लोग धोखा फरेब मक्कारी झूठ  जाने ना जो बोलेगा सही बोलेगा हम लोग अब भी दुनियां से अलग केवल भगवान को इंसान में  ही देखते है ।

रानी तृषा को लगा सही है ये भोले ?भाले तो होते ही है शातिर नही होते अतः जंगिया की बात सुनने में क्या हर्ज है ?नटो को घेर कर खड़ा जन समुदाय मूक दर्शक बनकर खड़ा था और नटो के समूह के अन्य सदस्य भी
महारानी तृषा ने कहा बोलो  नटरानी क्या कहना चाहती हो? 

जंगिया बोली रानी सा हम लोग भेंगा जनजातीय समाज के लोग है हमारे कुल देवी देवता का आशीर्वाद है कि उनके कुनबे में कोई औलाद हीन नही रह सकता औऱ ना ही कुनबा जिसे प्यार से कुलदेवी देविता के आशीर्वाद का प्रसाद देगा  लीजिये यह हमारे कुल देवी देवता का प्रसाद खाइएगा जरूर इसलिए इसे छोड़ दीजिएगा या फेंक मत दीजिएगा की इसे आपको नटो ने दिया है जो जंगली आदिवासी है और ज्ञान विज्ञान की दुनियां से बहुत जानकर नही है आप इसे स्वीकार अवश्य कीजियेगा ।

रानी तृषा ने जंगिया का प्रसाद लिया और जंगिया को पैसे कपड़े आदि दिए जंगिया ने ताली बजाई तभी नटो को घेर कर खड़ी भीड़ ने जंगिया की बिछाई चादर पर जिसके पास जो था उंसे रख दिया नटो का समूह चला गया।

महाराज ताम्रकर भी दिल्लीः से लौट आये रानी तृषा ने महाराज को नटो के आने की बात एव उनके कुल देवी देवता के प्रसाद की बात बताई और महाराज से आदिवासी नटो द्वारा दिये गए प्रसाद के खाने की अनुमति चाही राजा ताम्रकर ने कहा प्रसाद खाने में  क्या हर्ज है एक तो प्रसाद है दूसरा भोले भाले आदिवासियों को तुमसे कोई शत्रुता तो है नही की तुम्हे कोई विष आदि व्यर्थ में देने की सोचे भी वो तुम्हे क्यो कोई ऐसी चीज देने की हिम्मत या कोशिश मात्र करेंगे जिससे तुम्हारा नुकसान होता हो रानी तृषा नटो के प्रसाद को निश्चिन्त होकर खाओ निडर निर्भय होकर खाओ संम्भवः है इसमें ईश्वर की कोई मंशा छिपी हो ।

रानी ने पति की आज्ञा मिलते ही स्नान किया और कुल देवता देवी के पूजन किया एव पूजन के बाद भेंगा नट आदिवासियों द्वारा दिये गए प्रसाद को खा लिया कोई विशेष प्रभाव एक सप्ताह तक नही हुआ ।

एक सप्ताह बाद रानी तृषा को रजस्वला से रक्त प्रवाह बहने लगा कुंछः ही देर में रानी  कि स्वस्थगत स्थिति बहुत खराब हो गई आनन फानन उन्हें वाराणसी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक संस्थान में भर्ती कराया गया जहां चिकित्सकों को कुछ भी समझ मे नही आया दो दिन अपनी निगरानी के बाद दिल्ली के लिए रेफर कर दिया राजा ताम्रकर रानी तृषा को लेकर दिल्ली पहुंचे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से लेकर जितने भी सम्भव डॉक्टर हो सकते थे सभी से रानी तृषा को दिखाया लेकिन कोई फायदा नही हुआ अंत मे राजा ताम्रकर रानी तृषा को लेकर सीलटे अमिरिका पहुंचे ।

सौभगय से वहां राजा ताम्रकर के बचपन का साथी सहपाठी डॉक्टर जैक्सन एव उनकी पत्नी मारिया थी जिनके सहयोग से पूरा मेडिकल पैनल रानी तृषा की गहन जांच में जुट गया और नजीजे पर पहुंचा की रानी को कोई बीमारी नही है हो रहा रक्त स्राव उनके पूर्ण नारीत्व की प्राप्ति की दिशा की तरफ है डॉक्टरों ने राजा साहब के संतोष के लिए दवाएं देना तो शुरु किया लेकिन उनका मानना था कि यह रक्त स्राव शीघ्र ही बंद हो जाएगा हुआ भी यही लग्भग दो माह बाद रानी तृषा को  हो रही ब्लीडिंग बन्द हो गयी और वह एक माह में पूर्ण स्वस्थ हो गयी  ।

पूरे तीन महीने में ना तो रानी तृषा के मन मे नटो का ध्यान आया ना ही कोई उनको लेकर कोई दुराग्रह ही मन मे आया राजा ताम्रकर और महारानी तृषा देश लौट आये और अपने नियमित दिनचर्या में रम गए करीब छः माह बाद रानी तृषा को उल्टी आने लगी उनकी तबियत कुछ खराब हो गई  राजा ताम्रकर रानी को लेकर तुरंत बनारस हिंदू विश्वविद्यालय  आयुर्वेद संस्थान लेकर गए जहां डॉक्टरों ने उन्हें माँ बनने की बात बताई तब महारानी को जंगिया नटिन की बात याद आयी और उन्होंने पति ताम्रकर को बताई अब बहुत दिनों बाद राज परिवार में खुशियों की लहर दौड़ गयी। 

राजा ताम्रकर ने बनारस से ही नर्स हायर कर लिया रानी की देख रेख के लिए और राजा ताम्रकर सक्तेश गढ़ लौट कर चले आये रानी के माँ बनने की बात चारो तरफ आग और बिजली की तरह फैल गई ।

चारो तरफ शुभ कामनाओ बधाईयों उत्सवों का वातावरण उत्साह उल्लास जगह जगह समारोह  की धूम मचा गयी। 

महारानी को सिर्फ जंगिया के नट आदिवासी समूह की प्रतीक्षा थी पलक पांवड़े बिछाए उनका इंतजार कर रहीं थी उन्होंने राजा जी से निवेदन करके उनकी खोजबीन के लिए हर सम्भव प्रयास किया लेकिन उनका कही कोई पता नही चला ।

बनारस से आई नर्स प्रियम्बदा रानी तृषा की भलीभाँति देख भाल करती  रानी सा के साथ डॉक्टरो को दिखाने जाती उचित निर्देश रानी सा की देख रेख के लिए प्राप्त करती और कही से कोई कोताही नही करती ।

धीरे धीरे समय बीतता गया और महारानी का प्रसवकाल पूर्ण हो गया रानी तृषा को लेकर राजा ताम्रकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्विज्ञान संस्थान लेकर गए प्रियम्बदा भी साथ थी महारानी ने वाराणसी में एक खूबसूरत स्वस्थ पुत्र रत्न को जन्म दिया ।

जन्म लेने वाला बच्चा बहुत स्वस्थ हृष्ट पुष्ट खूबसूरत था राजा ताम्रकार एव तृषा को तो जैसे दूसरा जीवन ही मिल गया  परिवार में बहुत दिनों बाद एव राजा ताम्रकर की आरसठ वर्ष की आयु में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई रानी की आयु अड़तालीस वर्ष ही थी दोनों में आयु का अंतर बीस वर्ष था।

राजा ताम्रकर की रियसत में चारो तरफ खुशियों का वातावरण उत्साह उत्सवों की भरमार सभी ईश्वर की असीम कृपा के लिए  आभार एव कृतज्ञता व्यक्त करते नही थकते ।

महारानी तृषा को सिर्फ जंगिया और उसके आदिवासी नट समूह का ही इंतज़ार था क्योंकि उसे मालूम था राजा ताम्रकर के परिवार में अकल्पनीय सौगात की खुशी की वास्तविकता जंगिया ही थी जिसे कोई याद नही कर रहा था उत्साह उत्साव के वातावरण में।


नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।



   21
4 Comments

sunanda

25-Apr-2023 01:43 PM

very nice

Reply

Radhika

02-Mar-2023 09:21 PM

Nice

Reply

shahil khan

01-Mar-2023 06:46 PM

nice

Reply